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नज़्म
मैं क्या लिखूँ कि जो मेरा तुम्हारा रिश्ता है
वो आशिक़ी की ज़बाँ में कहीं भी दर्ज नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कश्मकश सी कश्मकश में है मज़ाक़-ए-आशिक़ी
कामराँ सी कामराँ हर सई-ए-इमकानी है आज
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ख़त्म तुझ पर हो गया लुत्फ़-ए-बयान-ए-आशिक़ी
मर्हबा ऐ वाक़िफ़-ए-राज़-ए-निहान-ए-आशिक़ी
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
''आशिक़ी क़ैद-ए-शरीअत में'' अभी आई न थी
किस क़दर थे मुतमइन गो जेब में पाई न थी