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नज़्म
'इलाज-ए-तंगी-ए-दामान-ए-याराँ चाहता हूँ मैं
निफ़ाक़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ को गुरेज़ाँ चाहता हूँ मैं
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
सड़ चुके इस के अनासिर हट चुका सोज़-ए-हयात
अब तुझे फ़िक्र-ए-इलाज-ए-दर्द-ए-इंसाँ है तो क्या
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
मरज़ कहते हैं सब इस को ये है लेकिन मरज़ ऐसा
छुपा जिस में इलाज-ए-गर्दिश-ए-चर्ख़-ए-कुहन भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ल्लाक़-ए-दो-'आलम का किया ज़िक्र-ओ-तसव्वुर
क्या ख़ूब 'इलाज-ए-ग़म-ए-जाँ हम ने किया है
इनाम थानवी
नज़्म
ख़म जबीं होती है उस की नक़्श-ए-पा-ए-दोस्त पर
और झुक जाते हैं उस के पाँव पर दोनों जहाँ