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नज़्म
रेगज़ारों में बगूलों के सिवा कुछ भी नहीं
साया-ए-अब्र-ए-गुरेज़ाँ से मुझे क्या लेना
साहिर लुधियानवी
नज़्म
''हर घड़ी अपनी जगह पर साअत-ए-नायाब है
हासिल-ए-उम्र-ए-गुरेज़ाँ एक भी लम्हा नहीं
अमजद इस्लाम अमजद
नज़्म
कहाँ इश्क़-ए-गुरेज़ाँ की कहानी ख़त्म होती है
वो घर के लॉन में बैठी यही कुछ सोचती होगी
अब्बास ताबिश
नज़्म
इल्तिफ़ात-ए-हुस्न की रफ़्तार मद्धम ही सही
हर अदा में तो करम है ज़ुल्फ़-ए-बरहम ही सही