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नज़्म
ये बातें झूटी बातें हैं ये लोगों ने फैलाई हैं
तुम 'इंशा'-जी का नाम न लो क्या 'इंशा'-जी सौदाई हैं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
गुल से अपनी निस्बत-ए-देरीना की खा कर क़सम
अहल-ए-दिल को इश्क़ के अंदाज़ समझाने लगीं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
है अब भी अपनी पूँजी इक मलाल-ए-जावेदान-ए-जाँ
नहीं मालूम 'ज़रयून' अब तुम्हारी उम्र क्या होगी
जौन एलिया
नज़्म
झाड़ियाँ जिन के क़फ़स में क़ैद है आह-ए-ख़िज़ाँ
सब्ज़ कर देगी उन्हें बाद-ए-बहार-ए-जावेदाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुन्कशिफ़ होने को है राज़-ए-सबात-ए-जावेदाँ
आज अगर शीराज़ा-ए-हस्ती परेशाँ है तो क्या
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
अगर तक़दीम-ए-इंसाँ की हक़ीक़त एक लम्हा है
वो इक लम्हा कभी जुज़्व-ए-हयात-ए-जावेदाँ क्यों हो