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नज़्म
मिरे हिन्दू मुसलमाँ सब मुझे सर पर बिठाते थे
उन्ही के फ़ैज़ से मअनी मुझे मअनी सिखाते थे
जौन एलिया
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
जो भी धारा था उन्हीं के लिए वो बेकल था
प्यार अपना भी तो गँगा की तरह निर्मल था
राजेन्द्र नाथ रहबर
नज़्म
यही हैं मर्हम-ए-काफ़ूर दिल के ज़ख़्मों पर
उन्ही को रखना है महफ़ूज़ ता-दम-ए-आख़िर
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उनके दिल जब होंगे याद-ए-मासियत से पाश पाश
तेरे रुख़ पर एक भी होगी न माज़ी की ख़राश
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ये जन्नत जो मिली है सब उन्हीं क़दमों की बरकत है
हमारे वास्ते रखना तुम्हारा इक सआदत है''