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नज़्म
नहीं हो तुम मगर वो चाँद तारे याद आते हैं
मिरी नज़रों से ओझल अब मक़ाम-ए-जोहद-ए-हस्ती है
शौकत परदेसी
नज़्म
अपने प्यारों दिल-दारों का ओझल मुखड़ा ढूँडें
इस काली दीवार पे उन के नाम का टुकड़ा ढूँडें
अहमद फ़राज़
नज़्म
अपने पंखों में मूँद के आँखों से ओझल हो जाते हैं
राहत जैसे ख़्वाब है ऐसे इंसानों का