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नज़्म
गर्मी-ए-आरज़ू फ़िराक़! शोरिश-ए-हाव-ओ-हू फ़िराक़!
मौज की जुस्तुजू फ़िराक़! क़तरे की आबरू फ़िराक़!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दिल के हर क़तरे में तूफ़ान-ए-तजल्ली भर दे
बत्न-ए-हर-ज़र्रा से इक महर-ए-मुबीं पैदा कर
जिगर मुरादाबादी
नज़्म
शायरी और मंतक़ी बहसें ये कैसा क़त्ल-ए-आम
बुर्रिश-ए-मिक़राज़ का देता है ज़ुल्फ़ों को पयाम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मेरी आँखों में लरज़ता हुआ क़तरा जागा
मेरी आँखों में लरज़ते हुए क़तरे ने किसी झील की सूरत ले ली
अहमद नदीम क़ासमी
नज़्म
आँसू ही उसे अपनी तरावट में समेटें तो समेटें
आँसू कि जसामत में हैं क़तरे से भी कुछ कम