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नज़्म
है नज़र ख़ू-कर्दा-ए-अख़्तर-शुमारी हाए हाए
एक दिन वो भी था जब दम भर की फ़ुर्क़त थी मुहाल
ज़े ख़े शीन
नज़्म
मजबूरियों ने डाला गर्दन में मेरी फंदा
ख़ुद-कर्दा-ए-वफ़ा हूँ जाँ-दादा-ए-रज़ा हूँ
ग़ुलाम भीक नैरंग
नज़्म
इक़बाल कौसर
नज़्म
हाँ देखा कल हम ने उस को देखने का जिसे अरमाँ था
वो जो अपने शहर से आगे क़र्या-ए-बाग़-ओ-बहाराँ था