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नज़्म
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्मकश का राज़ नज़रों से
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश-क़दमी से
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
कश्मकश में अपने ही मा'बद से कतराता हुआ
आदमी फिरता था दर दर ठोकरें खाता हुआ
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
ये कैसी कश्मकश है पाँव रुकते हैं न चलते हैं
न इक़रार-ए-तमन्ना है न इंकार-ए-मोहब्बत है
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
ये जोहद-ओ-कश्मकश ये ख़रोश-ए-जहाँ भी देख
अदबार की, सरों पे घनी बदलियाँ भी देख
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
कश्मकश सी कश्मकश में है मज़ाक़-ए-आशिक़ी
कामराँ सी कामराँ हर सई-ए-इमकानी है आज