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नज़्म
ज़िंदगी इंसाँ की है मानिंद-ए-मुर्ग़-ए-ख़ुश-नवा
शाख़ पर बैठा कोई दम चहचहाया उड़ गया
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़िक्र-ए-इंसाँ पर तिरी हस्ती से ये रौशन हुआ
है पर-ए-मुर्ग़-ए-तख़य्युल की रसाई ता-कुजा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ कि तेरा मुर्ग़-ए-जाँ तार-ए-नफ़स में है असीर
ऐ कि तेरी रूह का ताइर क़फ़स में है असीर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मियान-ए-शाख़-साराँ सोहबत-ए-मुर्ग़-ए-चमन कब तक
तिरे बाज़ू में है परवाज़-ए-शाहीन-ए-क़हस्तानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
पर-ए-पर्वाज़ मुर्ग़-ए-शोक़-ए-दिल को मिल गए फिर से
तमन्नाओं के पज़मुर्दा शगूफ़े खिल गए फिर से
बिर्ज लाल रअना
नज़्म
मायूस हर शजर ने बदला लिबास अपना
हर मुर्ग़-ए-ख़ुश-नवा ने छेड़ा नया तराना
मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल
नज़्म
क़ुतुब-नुमा न कोई बाद-नुमा और न मुर्ग़-ए-बाद-नुमा
हवाएँ आँधियाँ तूफ़ान बर्फ़-ओ-बाराँ
बलराज बख़्शी
नज़्म
कहाँ की तू ने ये तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ उड़ाई है
तुझे बहार का इक मुर्ग़-ए-ख़ुश-नवा समझूँ
मजनूँ गोरखपुरी
नज़्म
जिन की चोटी पर न पहुँचे कोई मुर्ग़-ए-तेज़-पर
सौदा-ए-लाल-ओ-जमुर्रद थी वहाँ की ख़ाक भी
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
नज़्म
आ जाए ज़िद में बर्क़ की जो ना-गहाँ कहीं
या जिस तरह बहार में मुर्ग़-ए-शिकस्ता पर