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नज़्म
कभी आवारागर्दी अपनी उन वीरान सड़कों की
कभी बातों में रातें काटना सुनसान जाड़ों की
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
कोई ज़बाँ को क़लम भी कर ले तो क्या करेगा
अभी तो हम ने क़लम के होंटों का काटना है
सय्यद मुबारक शाह
नज़्म
रात का जागते जागते काटना
और मुसलसल किसी बे-किनारा लहर की तरह बहते बहते सुकूँ ढूँढना