aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "कामयाब-ए-दीद"
रेत से आईना ढाला जा रहा हैसंग-ए-ज़ौक़-ए-दीद से
रात अभी बाक़ी हैहसरत-ए-दीद अभी ज़िंदा है
शौक़-ए-दीद लाया थाखींच कर मुझे तुम तक
हल्क़ा-ए-मय-गुसाराँ से दामन बचाएमैं कि ख़ुद जुरअत-ए-एहतिराम-ए-दीद
मेरी तन्हाइयों पे शाम रहे?हसरत-ए-दीद ना-तमाम रहे?
इश्तियाक़-ए-दीद का आलमहर इक पत्ते की आँखों में
मगर तुम्हारा रू-ए-ज़र-निगाररौज़न-ए-दयार-ए-दीद की हदों से आज मावरा रहा
मिरा अहद-ए-दीद भी आज तकउन्हें वो जुदाई न दे सका
ख़ुशबुओं से भरा बदन उस काक़ाबिल-ए-दीद बाँकपन उस का
मुन्नू चुन्नू मन्नू ख़ुश थेक़ाबिल-ए-दीद है शौक़ का आलम
भीड़ में आन बैठेअब क्या सवाल-ए-दीद और कैसा हिजाब
वही शफ़क़ है वही ज़ौ है मैं नहीं तो क्यामिरे बग़ैर भी तुम कामयाब-ए-इशरत थीं
मौजा-ए-दीद को नादीदा बना देती हैवक़्त-ए-मौजूद को महदूद सा कर देती है
गोल गोल आँखों के अंदर महव-ए-दीदकाले पारे की मुरक़्क़स पुतलियाँ
उस के चेहरे की साख़्त साअ'त-ए-दीदज़र्द होंटों की पत्रियां पीतल
दावत-ए-दीद देती हुई दाएँ बाएँ किताबेंकि एहसास को गुदगुदाती हुई
कि शर्बत-ए-दीद ही तोइन तल्ख़-कामियों के लिए शिफ़ा है
गर्द-ए-अय्याम की तहरीर को धोने के लिएतुम से गोया हों दम-ए-दीद जो मेरी पलकें
क़ाबिल-ए-दीद हूँ मैंइस जन्नत-ए-बे-नज़ीर में
तुझ से मिलने की अब उमीद नहींख़्वाब में भी मजाल-ए-दीद नहीं
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