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नज़्म
जिस तरह ताक़ में जल बुझती हैं शम्ओं की क़तार
ज़ुल्मत-ए-शब में जगाती हुई काशानों को
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
रौशनी साइंस की गो तेरे ऐवानों में है
नूर-ए-ईमानी भी लेकिन दिल के काशानों में है
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
तहज़ीब के ऐवानों में हर-सू शोर बपा है मातम का
नंगी हो कर नाच रही है बरबरियत काशानों में
मोहम्मद अब्दूल बासित
नज़्म
रात हँस हँस कर ये कहती है कि मय-ख़ाने में चल
फिर किसी शहनाज़-ए-लाला-रुख़ के काशाने में चल
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो सूद-ए-हाल से यकसर ज़ियाँ-काराना गुज़रा है
तलब थी ख़ून की क़य की उसे और बे-निहायत थी
जौन एलिया
नज़्म
कार-ख़ानों के भूके जियालों के नाम
बादशाह-ए-जहाँ वाली-ए-मा-सिवा, नाएब-उल-अल्लाह फ़िल-अर्ज़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये कार-ख़ानों में लोहे का शोर-ओ-ग़ुल जिस में
है दफ़्न लाखों ग़रीबों की रूह का नग़्मा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
गुलज़ार
नज़्म
''बला-कशान-ए-मोहब्बत पे जो हुआ सो हुआ
जो मुझ पे गुज़री मत उस से कहो, हुआ सो हुआ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मिस्ल-ए-पैराहन-ए-गुल फिर से बदन चाक हुए
जैसे अपनों की कमानों में हों अग़्यार के तीर