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नज़्म
बाग़बाँ दिल को कोई जैसे कि मिल जाता है
और हर सम्त फ़क़त तू ही नज़र आती है
विनोद कुमार त्रिपाठी बशर
नज़्म
जो नफ़रत है तो नफ़रत है मोहब्बत दिल से करते हैं
कि मन में जो भी होता है ज़बाँ से साफ़ कहते हैं
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
कि मन में कहीं टूटी हुई चूड़ी का टुकड़ा रह गया था
जो अब इस आवाज़ की लय पे बार बार चुभता है
इंजिला हमेश
नज़्म
याद से तेरी ही मामूर हैं दिन-रात ये कहना है मुझे
तुम कहोगी कि मैं हस्ती को कफ़न मान गई