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नज़्म
गुल करो शमएँ बढ़ा दो मय ओ मीना ओ अयाग़
अपने बे-ख़्वाब किवाड़ों को मुक़फ़्फ़ल कर लो
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ख़्वाब-ए-देरीना की ता'बीर बना कर तुझ को
अपनी आँखों के किवाड़ों में मुक़फ़्फ़ल कर लूँ