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नज़्म
'मीर'-ओ-'ग़ालिब' की दिल्ली कभी ऐसी तो न थी
हर गली हर नुक्कड़ पर साँप कुंडली मारे बैठे हैं यहाँ
परवेज़ शहरयार
नज़्म
जिस अहद-ए-सियासत ने ये ज़िंदा ज़बाँ कुचली
उस अहद-ए-सियासत को मरहूम का ग़म क्यूँ है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
रौंदी कुचली आवाज़ों के शोर से धरती गूँज उठी है
दुनिया के ईना-ए-नगर में हक़ की पहली गूँज उठी है