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नज़्म
तू राज़-ए-कुन-फ़काँ है अपनी आँखों पर अयाँ हो जा
ख़ुदी का राज़-दाँ हो जा ख़ुदा का तर्जुमाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
याँ तक जो हो चुका है सो है वो भी आदमी
कुल आदमी का हुस्न ओ क़ुबह में है याँ ज़ुहूर
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
अपनी दुनिया आप पैदा कर अगर ज़िंदों में है
सिर्र-ए-आदम है ज़मीर-ए-कुन-फ़काँ है ज़िंदगी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हवाएँ मस्त-कुन ख़ुशबुओं से मामूर कर दी हैं
वो हाकिम क़ादिर-ए-मुतलक़ है यकता और दाना है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
यही घटाएँ यही बर्क़-ओ-र'अद ओ क़ौस-ए-क़ुज़ह
यहीं के गीत रिवायात मौसमों के जुलूस
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
जिन के चंगुल में शब ओ रोज़ हैं फ़रियाद-कुनाँ
मेरे बेकार शब ओ रोज़ की नाज़ुक परियाँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ख़्वाब थे इक दिन औज-ए-ज़मीं से काहकशाँ को छू लेंगे
खेलेंगे गुल-रंग शफ़क़ से क़ौस-ए-क़ुज़ह में झूलेंगे
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
चाँदनी, क़ौस-ए-क़ुज़ह, औरत, शगूफ़ा, लाला-ज़ार
इल्म का इन नर्म शानों पर कोई रखता है बार?
जोश मलीहाबादी
नज़्म
''शोर-ए-लैला को कि बाज़-आराइश-ए-सौदा कुनद
ख़ाक-ए-मजनूँ-रा ग़ुबार-ए-ख़ातिर-ए-सहरा कुनद''
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुम्हारे ज़ख़्मों को भर दे ऐसी दवा नहीं है
मगर हम ऐसे ख़ुदा-परस्तों की दस्तरस में दु'आ-ए-कुन है