aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "कू-ए-सनम"
फैलता फैलता शाम-ए-ग़म का धुआँइक उदासी का तनता हुआ साएबाँ
बाक़ी है लहू दिल में तो हर अश्क से पैदारंग-ए-लब-ओ-रुख़्सार-ए-सनम करते रहेंगे
जो पता था अपने घर कासर-ए-कू-ए-ना-शनायाँ
ख़िज़ाँ में और बहाराँ मेंकि कू-ए-अहद-ओ-पैमाँ में
दार थीकू-ए-दिलदार भी
ज़माने हो गएहम कू-ए-जानाँ छोड़ आए थे
तू पीर-ए-सनम-ख़ाना-ए-असरार अज़ल सेमेहनत-कश ओ ख़ूँ-रेज़ ओ कम-आज़ार अज़ल से
हल्क़ा-ए-ज़ुल्फ़-ए-सनम की तीरगी से दूर हूँज़िंदगी के पेच-ओ-ख़म सुलझा रहा हूँ आज-कल
बुत-कदा-ए-सनम में हैसाक़ी-ओ-जाम-ए-जम में है
कू-ए-दिल में उजाला हैमेरे माह-ए-कामिल को
गुम हो गई है आ के जहाँ राह-ए-कू-ए-दोस्तलाया भी तो मुझे मिरा दीवाना-पन कहाँ
जो अपने साथ साथ चले कू-ए-दार तकवो दोस्त वो रफ़ीक़ वो अहबाब क्या हुए
दोस्तो, कू-ए-जानाँ की ना-मेहरबाँख़ाक पर अपने रौशन लहू की बहार
कू-ए-दिलदार की मंज़िलेंदोश पर अपनी अपनी सलीबें उठाए चलो
तो कब ख़ुश्बू की सूरत कू-ए-जानाँ से गुज़रना थासमझ में कुछ नहीं आता
अब इस धोके में क्या रहनाबहुत दिन रह लिया कू-ए-नदामत में
जब निकले कू-ए-मलामत मेंइक ग़ौग़ा तो हम ने भी सुना
जिन्हें कू-ए-यार अज़ीज़ थाजो खड़े थे मक़्तल-ए-इश्क़ में
है सब को अज़ीज़ कू-ए-जानाँइस राह में सब जिए मरे हैं
मेरे क़ानूँ भी नए मेरी शरीअत भी नईअब फ़क़ीहान-ए-हरम दस्त-ए-सनम चूमेंगे
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