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नज़्म
अब कोई घड़ी पल सा'अत में ये खेप बदन की है कफ़नी
क्या थाल कटोरी चाँदी की क्या पीतल की ढिबिया-ढकनी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
सलीक़े और तरीक़े से मिरी हर चीज़ रखती है
मैं ऑफ़िस के लिए निकलूँ मुझे वो कोट पहनाए