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नज़्म
जो न दाग़ चेहरा मिटा सके उन्हें तोड़ना ही था आइना
जो ख़ज़ाना लूट सके नहीं उसे रहज़नों ने लुटा दिया
नुशूर वाहिदी
नज़्म
चप्पा चप्पा पे हैं याँ गौहर-ए-यकता तह-ए-ख़ाक
दफ़्न होगा न कहीं इतना ख़ज़ाना हरगिज़
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
आँख के मुबहम इशारे से बुलाती है मुझे
एक पुर-असरार इशरत का ख़ज़ाना है वो चश्म-ए-दिल-नशीं
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
चप्पे चप्पे पे हैं याँ गौहर-ए-यकता तह-ए-ख़ाक
दफ़्न होगा न कहीं इतना ख़ज़ाना हरगिज़