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नज़्म
नग़्मा ओ मय का ये तूफ़ान-ए-तरब क्या कहिए
घर मिरा बन गया 'ख़य्याम' का घर आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
'सादी' के तकल्लुम को बिठा क़ल्ब-ओ-नज़र में
दे नग़्मा-ए-'ख़य्याम' को जा क़ल्ब-ओ-नज़र में
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
वसूल होते हैं पहले ये नामा-ओ-पैग़ाम
कि ऐ शहंशह-ए-अक़्लीम-ए-'हाफ़िज़'-ओ-'ख़य्याम'
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
चमक रेग-ए-रवाँ की सर-बुलंदी नख़्ल-ए-सहरा की
दयार-ए-'हाफ़िज़'-ओ-'ख़य्याम' की उड़ती हुई ख़ुशबू
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
'हाफ़िज़' ओ 'ख़य्याम' से कह दो कि महशर हो गया
तुन्दि-ए-सहबा से चकनाचूर साग़र हो गया
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
हुर्मत-ए-हर्फ़ हो पाबंद-ए-शिकोह-ए-ऐवाँ
ज़िक्र मत हो कहीं जलते हुए ख़ियाम का बस