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नज़्म
हैं तज़्किरे में कुछ ऐसे नुक़ूश-ए-फ़िक्र-ए-जमील
गुबार-ए-ख़ातिर-ओ-ख़ुतबात की सजें क़िंदील
सईद आरिफ़ी
नज़्म
तुम ने लिक्खा है मिरे ख़त मुझे वापस कर दो
डर गईं हुस्न-ए-दिल-आवेज़ की रुस्वाई से
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
ना-तवानों के हैं रक्षक हक़-परस्तों के हैं दास
ज़ुल्म-ओ-इस्तिब्दाद को जड़ से मिटा देते हैं हम
प्रेम पाल अश्क
नज़्म
माहरुख़ अली माही
नज़्म
जहान-ए-आब-ओ-गिल से आलम-ए-जावेद की ख़ातिर
नबुव्वत साथ जिस को ले गई वो अरमुग़ाँ तू है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिट गए थे उस की तहरीरों के सब ज़ेर-ओ-ज़बर
मैं ने स्टेटस की ख़ातिर कर तो ली शादी मगर
खालिद इरफ़ान
नज़्म
हर इक सख़्त मौज़ू पर इस तरह बोलता था कि मुझ को
समुंदर समझते थे सब इल्म ओ फ़न का, हर इक मेरी ख़ातिर