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नज़्म
है कौन जो ये पूछे उस हुस्न-ए-ख़ुद-आरा से
है जब कि गुरेज़ इतना फिर जल्वा-गरी क्यों है
असद मुल्तानी
नज़्म
राद हूँ बर्क़ हूँ बेचैन हूँ पारा हूँ मैं
ख़ुद-प्रुस्तार, ख़ुद-आगाह ख़ुद-आरा हूँ मैं