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नज़्म
न जाने मेरे दिल की ख़ुद-फ़रेबी क्यों नहीं जाती
तख़य्युल से हसीं ख़्वाबों के मंज़र गुम नहीं होते
सिद्दीक़ कलीम
नज़्म
ख़ुद-फ़रेबी का ये अंदाज़ है गो वाक़िफ़ हूँ
ख़ुद-फ़रेबी तो नहीं ग़म का मुदावा लेकिन