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नज़्म
ये अश्कों से भरी छागल ये बे-पर्दा-ओ-ख़ुद-सर दिल
चटानें दहर की आतिश को छू कर भी नहीं पिघलीं
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
तो मुझ को हम-नशीं अपना लड़कपन याद आता है
हुआ करती है जब छुट्टी तो चंचल सर-फिरे ख़ुद-सर