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नज़्म
तंग-दस्ती में भी छोड़ा न वफ़ा का दामन
मुफ़्लिसी में भी न अपनाए ख़ुशामद के चलन
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
जो नहीं लाते हैं ख़ातिर में ख़ुशामद को मिरी
वो झिड़क देते हैं मुझ को उन से घबराता हूँ मैं
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
सब ख़ुशामद-पेशा, दुनिया-दार और बे-रोज़गार
रात दिन मिलने को आते हैं क़तार-अंदर-क़तार
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
लालची कितने ख़ुशामद-ख़ोर दौलत के ग़ुलाम
ख़ुद-ग़रज़ मक्कार इब्न-उल-वक़्त झूटों के इमाम
शातिर हकीमी
नज़्म
मादर-ए-गीती ने 'इस्मत' कुछ मिरी परवा न की
सास करती है ख़ुशामद कहते हैं दामाद की
इस्मतुल्लाह इस्मत बेग
नज़्म
ख़िज़्र की बेजा ख़ुशामद पे नहीं राज़ी हुनूज़
हाँ मगर ज़ेहन के पर्दे पे उभरते हैं सवाल
ज़हीर सिद्दीक़ी
नज़्म
ख़ुशामद इल्तिजा मिन्नत समाजत आरज़ू-मंदी
ज़वाहिर में ज़वाहिर की करें हम ख़ाक पाबंदी