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नज़्म
यही मिरी ख़्वाब-गाह-ए-इशरत यही है मेरा निगार-ख़ाना
धुएँ की रंगीन बदलियों में पका रही है जहाँ वो खाना
क़ाज़ी गुलाम मोहम्मद
नज़्म
रहज़नों का क़स्र-ए-शूरा क़ातिलों की ख़्वाब-गाह
खिलखिलाते हैं जराएम जगमगाते हैं गुनाह
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
तेरे कूचा से जिन्हें हो कर गुज़रना है गुनाह
गर्म उन की साँस से रहती है तेरी ख़्वाब-गाह