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नज़्म
उक़ाबी शान से झपटे थे जो बे-बाल-ओ-पर निकले
सितारे शाम के ख़ून-ए-शफ़क़ में डूब कर निकले
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जुम्बिश-ए-मौज-ए-नसीम-ए-सुब्ह का ए'जाज़ देख
ताइर-ए-बे-बाल-ओ-पर की हसरत-ए-परवाज़ देख
मेला राम वफ़ा
नज़्म
यूँ उफ़ न बाग़-ए-दहर में बरबाद हो कोई
बुलबुल का आशियाँ है कहीं बाल-ओ-पर कहीं
राज्य बहादुर सकसेना औज
नज़्म
वो कोशिश तो बहुत करता है लेकिन उड़ नहीं सकता
परिंदे के निकल आए हैं शायद बाल-ओ-पर ज़्यादा