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नज़्म
आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझ से
जिस ने इस दिल को परी-ख़ाना बना रक्खा था
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
न सहबा हूँ न साक़ी हूँ न मस्ती हूँ न पैमाना
मैं इस मय-ख़ाना-ए-हस्ती में हर शय की हक़ीक़त हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आह ये दुनिया ये मातम-ख़ाना-ए-बरना-ओ-पीर
आदमी है किस तिलिस्म-ए-दोश-ओ-फ़र्दा में असीर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आह शूदर के लिए हिन्दोस्ताँ ग़म-ख़ाना है
दर्द-ए-इंसानी से इस बस्ती का दिल बेगाना है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
और मेरी आँखों में रोने की हिम्मत ही नहीं आँसू ही नहीं
जूँ तूँ रस्ता कट जाता है और बंदी-ख़ाना आता है