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नज़्म
राह दुश्वार में इक क़ाफ़िला-ए-निकहत-ओ-नूर
संग-ए-ख़ारा की चटानों के मुक़ाबिल है खड़ा
अंजुम आज़मी
नज़्म
समझ सकता है कौन इस राज़ को जुज़ अहल-ए-मय-ख़ाना
लिबास-ए-सुब्ह में कितनी भयानक शाम है साक़ी
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
नज़्म
यूसुफ़ ज़फ़र
नज़्म
ऐ कि सीने में तिरे अरमान-ए-गुल है बे-क़रार
देखना बेदाद-ए-नोक-ए-ख़ार से भी होशियार
ज़फ़र अहमद सिद्दीक़ी
नज़्म
आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझ से
जिस ने इस दिल को परी-ख़ाना बना रक्खा था
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मैं शायद अब नहीं हूँ वो मगर अब भी वही हूँ मैं
ग़ज़ब हंगामा-परवर ख़ीरा-सरा अब भी वही हूँ मैं
जौन एलिया
नज़्म
नज़र को ख़ीरा करती है चमक तहज़ीब-ए-हाज़िर की
ये सन्नाई मगर झूटे निगूँ की रेज़ा-कारी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दश्त-ए-पुर-ख़ार को फ़िरदौस-ए-जवाँ जाना था
रेग को सिलसिला-ए-आब-ए-रवाँ जाना था