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नज़्म
वो अपनी नफ़्इ से इसबात तक माशर के पहुँचा है
कि ख़ून-ए-रायगाँ के अम्र में पड़ना नहीं हम को
जौन एलिया
नज़्म
वो एक तड़प वो एक लगन कुछ खोने की कुछ पाने की
वो एक तलब दो रूहों के इक क़ालिब में ढल जाने की