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नज़्म
और आबादी में तू ज़ंजीरी-ए-किश्त-ओ-नख़ील
पुख़्ता-तर है गर्दिश-ए-पैहम से जाम-ए-ज़िंदगी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
परेशाँ हूँ मैं मुश्त-ए-ख़ाक लेकिन कुछ नहीं खुलता
सिकंदर हूँ कि आईना हूँ या गर्द-ए-कुदूरत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
तुझ में कुछ पैदा नहीं देरीना रोज़ी के निशाँ
तू जवाँ है गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर के दरमियाँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
हाँ कज करो कुलाह कि सब कुछ लुटा के हम
अब बे-नियाज़-ए-गर्दिश-ए-दौराँ हुए तो हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हज़ारों मसअलों पर दावत-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र देगी
कि जब थोड़ी सी मोहलत गर्दिश-ए-शाम-ओ-सहर देगी
अब्दुल अहद साज़
नज़्म
हम तो मजबूर थे इस दिल से कि जिस में हर दम
गर्दिश-ए-ख़ूँ से वो कोहराम बपा रहता है