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नज़्म
गर्दिश-ए-वक़्त रुकी जाती है तौबा तौबा
मैं ने देखा नहीं तुझ सा कोई आहिस्ता-ख़िराम
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
मरज़ कहते हैं सब इस को ये है लेकिन मरज़ ऐसा
छुपा जिस में इलाज-ए-गर्दिश-ए-चर्ख़-ए-कुहन भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
बंद है कमरे के अंदर गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार
क्या ख़बर आई ख़िज़ाँ कब कब गई फ़स्ल-ए-बहार