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नज़्म
बातिल हो ख़्वाह कोह-ए-गिराँ ख़्वाह गर्द-बाद
हिन्दोस्ताँ की फ़ौज-ए-ज़फ़र-मौज ज़िंदाबाद
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
गुलशन-ए-याद में गर आज दम-ए-बाद-ए-सबा
फिर से चाहे कि गुल-अफ़शाँ हो तो हो जाने दो