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नज़्म
सुलैमाँ सर-ब-ज़ानू तुर्श-रू ग़म-गीं, परेशाँ-मू
जहाँ-गिरी, जहाँ-बानी फ़क़त तर्रार-ए-आहू
नून मीम राशिद
नज़्म
सलाम-ए-रुख़्सत-ए-ग़मगीं किए जाता हूँ वादी को
सलाम ऐ वादी-ए-वीराँ जहाँ 'रेहाना' रहती थी
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मल्बूस परेशाँ दिल ग़मगीं इफ़्लास के नश्तर खाते हैं
मस्जिद के फ़रिश्ते इंसाँ को इंसान से कमतर पाते हैं
नुशूर वाहिदी
नज़्म
इक ग़म-गीं लड़की के चेहरे पर चाँद की ज़र्दी छाई है
जो बर्फ़ गिरी थी इस पे लहू के छींटों की रुशनाई है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसी इक लफ़्ज़-ए-बे-मअ'नी की मीठी मीठी सरगोशी
यही चीज़ें मिरे ग़मगीं ख़यालों पर हमेशा छाई रहती हैं
मीराजी
नज़्म
ये क्या कहा कि तुम हो रंगीनियों के ख़ूगर
ग़मगीं हैं तुम से बढ़ कर ऐ ग़म-कुशान-ए-सहरा