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नज़्म
ग़ुबार-आलूद रस्तों से गुज़रती है
अभी जुगनू शबों में अपने होने की गवाही तक नहीं देते
नोशी गिलानी
नज़्म
ख़याल के अब तमाम ख़ाके मिटा दिए हैं
ये रोज़-ओ-शब की ग़ुबार-आलूद सा’अतों ने गोया
शहज़ाद अंजुम बुरहानी
नज़्म
ग़ुबार-आलूदा-ए-रंग-ओ-नसब हैं बाल-ओ-पर तेरे
तू ऐ मुर्ग़-ए-हरम उड़ने से पहले पर-फ़िशाँ हो जा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जून का तपता महीना तिम्तिमाता आफ़्ताब
ढल चुका है दिन के साँचे में जहन्नम का शबाब