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नज़्म
इन अय्याम-ए-मोहब्बत में मज़े क्या क्या नहीं लूटे
वुफ़ूर-ए-शौक़ में कतरे नहीं क्या मैं ने गुल-बूटे
धर्मपाल आक़िल
नज़्म
रहे शान-ए-तलाक़त लफ़्ज़-ओ-मा'नी हैं कि गुल-बूटे
ज़हे औज-ए-हज़ाक़त जान दे दी मुर्दा हिकमत को