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नज़्म
ज़ीस्त इक चा-ब-चा सड़ता हुआ गदला पानी
जिस से सैराब हुआ करते हैं ख़िंज़ीर ओ शग़ाल
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
बिजलियाँ चमकेंगी आलाम-ओ-मसाइब की अगर
ग़म की चल जाएगी हर सम्त हवा मेरे बा'द
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
नज़्म
कहानी क्या सुनाऊँ दिल-जलों की ग़म के मारों की
कि उठता चार-सू इक ग़म का तूफ़ाँ देख लेता हूँ