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नज़्म
गुलज़ार
नज़्म
दो नंबर बिन सियासत क्या क्या ख़ाक चुनाव कराएँगे
बिन काली नक़दी के यारो क्या वोट ख़रीदे जाएँगे
सदा अम्बालवी
नज़्म
फिर अलमारी में उड़ कर जाए सीधे अपने कोने
ग़ालिब का दीवान चुना है रहने को इन दो ने
क़ैसर-उल जाफ़री
नज़्म
बड़े अरमान से मैं ने चुना था जिन को दामन में
किसे मालूम था वो फूल बन जाएँगे अंगारे