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नज़्म
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ख़ूँ चूस रहा है पौदों का इक फूल जो ख़ंदाँ होता है
पामाल बना कर सब्ज़ों को इक सर्व खरामा होता है
नुशूर वाहिदी
नज़्म
ये अपने हाथ में तहज़ीब का फ़ानूस लेती है
मगर मज़दूर के तन से लहू तक चूस लेती है
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
घंटी बाँध के चूहे जब बिल्ली से दौड़ लगाते थे
पेट पे दोनों हाथ बजा कर सब क़व्वाली गाते थे
गुलज़ार
नज़्म
या फिर नज़्म है इक चूहे पर हामिद-'मदनी' का शहकार
कोई नहीं है अच्छा शायर कोई नहीं अफ़्साना-निगार
हबीब जालिब
नज़्म
सारी क़ुव्वत चूस चुकी दिन भर की शहर-नवर्दी
माथों में से झाँक रही है मरती धूप की ज़र्दी