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नज़्म
रख तो ली बात तिरी अब न कभी बोलूँगा
अब न होंटों पे बिला-वज्ह हँसी छाएगी
विनोद कुमार त्रिपाठी बशर
नज़्म
तुझ से मुँह मोड़ के मुँह अपना दिखाएँगे कहाँ
घर जो छोड़ेंगे तो फिर छावनी छाएँगे कहाँ