aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "जग-बीती"
कहानियाँ जो सुनूँ उन में डूब जाता थाकि आदमी के लिए आदमी की जग-बीती
तन्हाइ-ए-दिल जब बढ़ती हैजब यास की गहरी तारीकी दुनिया-ए-दिल पर छाती है
बस्ती का महफ़ूज़ तसव्वुर पहुँचा देगी लेकिन जंगलसड़कें बनने से पहले ही
मैं जब बस्ती की सरहद पर खड़ा हो करउफ़ुक़ में डूबती राहों को तकता था
तुम्हारी याद कीपुर्वा कभी जो बहती है
जो बीती सो बीत गईअब वो बातें क्यूँ दोहराते हो
और जुग बीत गएइक आवाज़ तआ'क़ुब करती रहती है:
जो बीता सो बीत गयासब को मुबारक साल नया
तुझे कैसे बीतूँ बरसों मेंजो बीत चुका वो बादल था
नाज़ुक ठंडी घास को छू करमस्त हवा जब बहती होगी
पाँव पे अपने खड़ा हो वोअच्छा सँभाले जो बीवी को
क्या दिन थे वो जो बीत गएक्या मेरे सारे मीत गए
ये लम्हा जो गुज़र रहा हैऔर वक़्त जो बीत रहा है
जंगल बस्ती खेत खलियानघर घर पहुँचाओ ये अभियान
जो बीत जाता है वो फ़ना हैजो होने वाला है वो फ़ना है
दर्द लिखा है अच्छा लिक्खा हैदिल पर जो बीती वो कोई बात नहीं
बुज़ुर्गों ने जो बीजी थी विरासत कीहम ख़लिश धूप ले कर आए हैं
ख़ून-चाशीदा सदियों का वो घोर-अँधेरा बिखर गयाजंग-ओ-जदल का जज़्बा जागा अम्न का परचम उतर गया
कल जो बीती वो कल थी तुम मेरीआज और आने वाली कल हो तुम
जब बस्ती बस्ती दहक उठीयूँ लगता था सब राख हुआ
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