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नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
गोया वो तय्यारा, उस की मोहब्बत में
अहद-ए-वफ़ा के किसी जब्र-ए-ताक़त-रुबा ही से गुज़रा!
नून मीम राशिद
नज़्म
जब्र-ए-बे-रंगी का ख़म्याज़ा मुक़द्दर है
अगर यूँ अपने हाथों से लगाई मेहँदियों के रंग उड़ जाएँ
किश्वर नाहीद
नज़्म
अभी तो हुस्न के पैरों पे है जब्र-ए-हिना-बंदी
अभी है इश्क़ पर आईन-ए-फ़र्सूदा की पाबंदी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ख़्वाब-ज़ार-ए-वक़्त में कितने ही बे-सामाँ सिसिफ़स
ना-शुनीदा साअ'तों की सर-बुलंदी चाहते हैं
ख़ावर नक़ीब
नज़्म
जौर-ए-शाही से ग़मीं जब्र-ए-सियासत से निढाल
जाने किस मोड़ पे ये धन से धमाका हो जाएँ