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नज़्म
फ़ना कर देंगे अहल-ए-जब्र-ओ-इस्तिब्दाद की हस्ती
ज़मीं में दफ़्न रस्म-ए-जहल-ओ-वहशत कर के छोड़ेंगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
दवाम-ए-जहल ओ हाल-ए-इस्तिराहत चाहता हूँ मैं
न देखो काश तुम वो ख़्वाब जो देखा किया हूँ मैं
जौन एलिया
नज़्म
दिखाईं भोपाल को तिरे ही जुनूँ ने जहद-ओ-अमल की राहें
वगर्ना मायूस हो चुके थे यहाँ के चारा-गरान-ए-उर्दू
रहबर जौनपूरी
नज़्म
मुझे हंगामा-ए-जंग-ओ-जदल में कैफ़ मिलता है
मिरी फ़ितरत को ख़ूँ-रेज़ी के अफ़्साने से रग़बत है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
रिफ़अत सरोश
नज़्म
न जहल से कोई ढारस न आगही से तसल्ली
न वक़्त-ए-नाला-ओ-ज़ारी न होश-ए-ज़ख़्म-शुमारी