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नज़्म
ज़फ़र-मंदों के आगे रिज़्क़ की तहसील की ख़ातिर
कभी अपना ही नग़्मा उन का कह कर मुस्कुराना है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
अल्लाह अल्लाह किस क़दर इंसाफ़ के तालिब हो आज
मीर-जाफ़र की क़सम क्या दुश्मन-ए-हक़ था 'सिराज'
जोश मलीहाबादी
नज़्म
सुरूर बाराबंकवी
नज़्म
मग़रिब ओ मशरिक़ नज़र आने लगे ज़ेर-ओ-ज़बर
इंक़लाब-ए-हिन्द है सारे जहाँ का इंक़लाब
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
ये ला-सिलकी, ये टेलीफ़ोन ये रेलें, ये तय्यारे
ये ज़ेर-ए-आब ओ बाला-ए-फ़लक इंसाँ की तर्रारी
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
पहुँचता है हर इक मय-कश के आगे दौर-ए-जाम उस का
किसी को तिश्ना-लब रखता नहीं है लुत्फ़-ए-आम उस का
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
ज़िंदा-बाश ऐ इंक़लाब ऐ शोला-ए-फ़ानूस-ए-हिन्द
गर्मियाँ जिस की फ़रोग़-ए-मंक़ल-ए-जाँ हो गईं
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
ये 'ज़ौक़'-ओ-'ज़फ़र' 'दर्द' के नग़्मात की धरती
और 'दाग़' से बुलबुल का चमन-ज़ार है दिल्ली