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नज़्म
ये बात अजीब सुनाते हो वो दुनिया से बे-आस हुए
इक नाम सुना और ग़श खाया इक ज़िक्र पे आप उदास हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
दिल बन चुका है मस्कन-ए-सोज़-ए-ग़म-ए-फ़िराक़
सीना जवाब-ए-बर्क़-ए-तपाँ है तिरे बग़ैर
शैदा अम्बालवी
नज़्म
गर कभी ख़ल्वत में छेड़ा क़िस्सा-ए-शाम-ए-फ़िराक़
मुस्कुराना मुस्कुरा कर टाल जाना याद है
हबीब जौनपुरी
नज़्म
अपने मज़हब के मसाइल से तबीअ'त थी नुफ़ूर
रहते थे ज़िक्र-ए-बुतान-ए-सीम-तन की धुन में चूर
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
किस क़दर है दिल में तेरे इल्तिहाब-ओ-इंशिक़ाक़
क्या तुझे भी है किसी से शिकवा-ए-रंज-ए-फ़िराक़
साक़िब कानपुरी
नज़्म
यूँ गुमाँ होता है गरचे है अभी सुब्ह-ए-फ़िराक़
ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात