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नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ग़रज़ चारों तरफ़ अब इल्म ही की बादशाही है
कि उस के बाज़ूओं में क़ुव्वत-ए-दस्त-ए-इलाही है
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
न हुस्न ओ इश्क़ ने पाई अमाँ क़हर-ए-इलाही से
दबी पादाश अमीरी से फ़क़ीरी से न शाही से