aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ज़िल्ल-ए-इलाही"
पुराना पासबाँ ज़िल्ल-ए-इलाही काजिसे चाहे करे मंसब अता आलम-पनाही का
वो ज़िल्ल-ए-इलाहीवो जाँ की अमाँ देने वाले
और कहा ऐ ज़िल्ल-ए-इलाहीआप का ख़त अब मेरे ख़त से कितना छोटा लगने लगा है
काँप रहे हैं ज़ालिम सुल्ताँ टूट गए दिल जब्बारों केभाग रहे हैं ज़िल्ल-ए-इलाही मुँह उतरे हैं ग़द्दारों के
ग़रज़ चारों तरफ़ अब इल्म ही की बादशाही हैकि उस के बाज़ूओं में क़ुव्वत-ए-दस्त-ए-इलाही है
सुब्ह तकयाद-ए-इलाही में बसर करता
वो उठीबारगाह-ए-इलाही में सज्दा-रेज़ हो गई
क़ुदरत-ए-इलाही नेबे-मुराद रस्तों पर बाँध कर उतारे हैं
तेरे होंटों पे ज़िक्र-ए-इलाही रहेदूर साए से तेरे तबाही रहे
यही मक़ाम है मोमिन की क़ुव्वतों का 'इयारइसी मक़ाम से आदम है ज़िल्ल-ए-सुब्हानी
ज़िंदगी फ़िक्र-ओ-नज़र की रौशनीज़िंदगी ज़ात-ए-इलाही का शुऊ'र
क़ुलूब ज़िंदा से अफ़्सोस हाशमी फ़रज़ंदचराग़ इश्क़-ए-इलाही का नूर खो बैठे
तो नादान इंसाँ बहुत ग़ुल मचातामगर ये निज़ाम-ए-इलाही बदलता नहीं है
ये साबिर ये शाकिर ये ज़ाकिर ये ज़ाहिदये दीन-ए-इलाही के मे'मार बंदे
अजमेर की दरगाह-ए-मुअ'ल्ला तेरी जागीरमहबूब-ए-इलाही की ज़मीं पर तिरी तनवीर
और मुरझा के भी आज़ाद न हो सकती थींज़िल्ल-ए-सुबहान की उल्फ़त के भरम की ख़ातिर
मैं था क़ुर्ब-ए-इलाही से शाद-ओ-मगनउस से महव-ए-सुख़न
बे-बदल इल्म-ए-इलाही का सहीफ़ा है येनाख़ुदा कश्ती-ए-दिल का इसे जानो समझो
मस्जिद के मिनारों से वो बांग-ए-अज़ाँ आईदरबार-ए-इलाही में अब होगी जबीं-साई
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