aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ज़ी-कमाल"
जब क़त्ल हुआ सुर साज़ों काजब काल पड़ा आवाज़ों का
इक बरस और कट गया 'शारिक़'रोज़ साँसों की जंग लड़ते हुए
डमरू बोला डम डम डमगाँधी जी के मंतर तीन
एक दुनिया बड़े कमाल की हैलम्हा लम्हा नए सवाल की है
वही बहार ओ ख़िज़ाँ है मुझ में भीमुझ से बाहर भी
फ़क़ीर माँगे तो साफ़ कह दें कि तू है मज़बूत जा कमा खाक़ुबूल फ़रमाएँ आप दावत तो अपना सरमाया कुल खिला दे
जहाँ मैं हूँहज़ारों ख़्वाहिशें आसूदगी की ज़िंदगी का पैरहन बन कर
खनकती मिट्टी में रौशनी कीमिलावटों से बनी हुई हो
ऐ सिपहर-ए-बरीं के सय्यारोऐ फ़ज़ा-ए-ज़मीं के गुल-ज़ारो
वो चाय की प्याली पे यारों के जलसेवो सर्दी की रातें वो ज़ुल्फ़ों के क़िस्से
1बिछी हुई है बिसात कब से
जब आदमी के हाल पे आती है मुफ़्लिसीकिस किस तरह से उस को सताती है मुफ़्लिसी
काम कोई जब किया करें हमनाम अल्लाह का लिया करें हम
अँधेरी रात में जब मुस्कुरा उठते हैं सय्यारेतरन्नुम फूट पड़ता है मिरे साज़-ए-रग-ए-जाँ से
क्या यही है मुआशरत का कमालमर्द बे-कार व ज़न तही-आग़ोश
न गुफ़्तुगू का कमाल आहंगन बात के बे-मिसाल मा'नी
हमारे पैरों के छाले फूटेंतो इन के नम से
मिलती है जहाँ कमाँ ज़मीं सेमिलता है वो जाम-ए-ज़र वहीं से
इक तरफ़ राहत का और फ़रहत का कालइक तरफ़ होली में उड़ता है गुलाल
ज़िया-ए-राज़ को आकाश में तलाश न करकि ये है रूह की गहराइयों में रख़्शंदा
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