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नज़्म
मुश्किल है कोई तुझ सा मिले जाँ-निसार-ए-क़ौम
कहने को यूँ तो मुल्क में लीडर हैं बे-शुमार
धर्मपाल आक़िल
नज़्म
जाँ-निसार-ए-हिन्द था वो बाल-गंगा-धर-तिलक
नौ-बहार-ए-हिन्द था वो बाल-गंगा-धर-तिलक
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
तू और ज़ेब-ओ-ज़ीनत-ए-अलवान-ए-ज़र-निगार
क्या तेरे क़स्र-ए-नाज़ की हिलती नहीं ज़मीं
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
तमतमाए हुए आरिज़ पे ये अश्कों की क़तार
मुझ से इस दर्जा ख़फ़ा आप से इतनी बेज़ार
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
उफ़ ये शबनम से छलकते हुए फूलों के अयाग़
इस चमन में हैं अभी दीदा-ए-पुर-नम कितने
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
अपना हर ख़्वाब-ए-जवाँ सौंप चला हूँ तुझ को
अपना सरमाया-ए-जाँ सौंप चला हूँ तुझ को
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
ये देश कि हिन्दू और मुस्लिम तहज़ीबों का शीराज़ा है
सदियों की पुरानी बात है ये पर आज भी कितनी ताज़ा है
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
शिद्दत-ए-इफ़्लास से जब ज़िंदगी थी तुझ पे तंग
इश्तिहा के साथ थी जब ग़ैरत ओ इस्मत की जंग