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नज़्म
देख कर बे-साख़्ता होता है दिल बेहद मगन
हर तरफ़ इक जल्वा-ए-शादाब-ए-हस्त-ओ-बूद है
चौधरी कालका प्रसाद ईजाद बिस्वानी
नज़्म
अब भी तकती हैं मिरी राह वो काफ़िर आँखें
अब भी दुज़्दीदा नज़र जानिब-ए-दर है कि नहीं
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ब-ईं यक़ीन ओ ब-ईं एतिक़ाद-ए-हुस्न-ए-यकीं
अभी तो आएगा वो अहद-ए-ख़ूँ-चकाँ इक दिन
मसूद अख़्तर जमाल
नज़्म
जानिब-ए-मंज़िल हमारा कारवाँ बढ़ता गया
अम्न के परचम लिए हिन्दोस्ताँ बढ़ता गया